जयंत कस्तुआर का
परिचय
भारत में प्रदर्शन
कलाओं की
राष्ट्रीय अकादेमी ‘संगीत नाटक अकादेमी’
के पूर्व
सचिव एवं
सीईओ जयंत
कस्तुआर आज
भारतीय प्रदर्शन
कलाओं की
दुनिया में
उत्कृष्ट कत्थक
प्रतिपादक, कला प्रशासक, प्रवक्ता, विचारक
और पथ-प्रदर्शक हैं।26 जनवरी, 1955 को जमशेदपुर
में जन्मे
और दिल्ली
के सेंट
स्टीफंस से
शिक्षित जयंत
कस्तुआर लोक
सेवा, अकादमिक
और शास्त्रीय
कला में
उत्कृष्टता का अनूठा मिश्रण हैं।
प्रदर्शन कलाओं
के विषय
पर सार्वजनिक
रूप से
बोलने, राष्ट्रीय
और अंतर्राष्ट्रीय
शो के
परिकल्पना, स्टेज डिजाईन एवं प्रस्तुतीकरण
में उन्हें
सामान उत्कृष्टता
हासिल है।
उन्होंने कई
राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय प्रोजेक्ट्स को
नेतृत्व प्रदान
किया है
और प्रदर्शन
कला परम्पराओं
के संरक्षण
एवं संवर्धन
के लिए
कई महत्त्वपूर्ण
कदम उठाए,
जिसके लिए
देशभर में
उन्हें सम्मान
की नज़रों
से देखा
जाता है।
भारतीय कलाओं
के प्रचार
एवं प्रसार
और अंतर्राष्ट्रीय
शो एवं
कार्यक्रमों को डिजाईन करने के
लिए अमेरिका,
चीन, जापान,
कोरिया, ब्राजील
आदि देशों
की यात्रा
भी की
है।
भारत की सर्वोच्च
सांस्कृतिक संस्था ‘संगीत नाटक अकादेमी’
के सचिव
एवं सीईओ
के पद
पर 12 सालों
तक रहने
के बाद
जयंत कस्तुआर
ने अपनी
कला और
अकादमिक रूचि
का पुनः
अनुसरण करने
के लिए
दिसंबर 2011 में स्वेच्छा से पदत्याग
कर दिया.
वर्तमान में
वे अकादेमी
की कार्यकारिणी
सभा (एग्जिक्यूटिव
बोर्ड) के
सदस्य हैं। वे मंच पर
पहली बार
वर्ष 1957 और कत्थक का पहला
एकल प्रदर्शन
1959 में दिया,
जिसने उन्हें
अपने क्षेत्र
में 1960 के
दौरान विलक्षण
बालक के
रूप में
ख्याति दिलाई।
उन्होंने नृत्य
की प्रारंभिक
शिक्षा गुरु
श्री इन्द्र
कुमार पटनायक
से हासिल
की, बाद
में वे
जयपुर घराने
के विख्यात
गुरु पंडित
दुर्गालाल के सानिध्य में आए
और दिल्ली
में उच्च
शिक्षा-दीक्षा
प्राप्त की।
आज वे
पंडित दुर्गालाल
की कत्थक
शैली के
विशिष्ट प्रतिनिधि
के तौर
पर जाने
जाते हैं।
जयंत कस्तुआर देशभर
में अपना
नृत्य प्रदर्शन
कर चुके
हैं और
नृत्य के
मुख्य उत्सवों
में भाग
ले चुके
हैं. वे
प्राचीन परंपरा
के एकलवादी
अभिनय में
दक्ष प्रदर्शन
के लिए
जाने जाते
हैं. करीब
आधी शताब्दी
से कत्थक
नृत्य में
रचे-बसे
जयंत मौलिकता
एवं परंपरा
का अद्भुत
तारतम्य प्रदर्शित
करते हैं.
उन्हें ‘नृत्त’
यानिकि शुद्ध
नृत्य और
भाव- भंगिमाओं
पर आधारित
नृत्य एवं
अभिनय दोनों
पर समान
दक्षता प्राप्त
है. मौलिक
‘घत्निक’ में
उनकी विस्तृत
पकड़ और
हिन्दुस्तानी ठुमरियों अथवा दूसरी परम्पराओं
की रचनाओं
में भाव
का रूपांतर
प्रस्तुत करने
के लिए
उन्हें काफी
प्रशंसा प्राप्त
हुई है।
उन्होंने कलाकारों,
नृत्य के
विद्यार्थियों, अनुसन्धान कार्य में लगे
विद्वानों, विश्वविद्यालय के छात्रों
और आईएफएस प्रोबेशनरों को लाभान्वित
करने के
लिए कई
व्याख्यान और नमूना-नृत्य प्रदर्शन
भी किये
हैं। समय
समय पर
उन्होंने युवा
विद्यार्थियों को नृत्य की शिक्षा
भी दी
है, लखनऊ,
भोपाल, पुणे,
कोलकता, गुवाहाटी
और दिल्ली
आदि शहरों
में कार्यशालाओं
का आयोजन
किया है
और सैकड़ों
युवा नर्तकों
का मार्ग-दर्शन किया
है।
जिन मुख्य संस्थाओं
या संगठनों
के लिए
उन्होंने नृत्य
की प्रस्तुति
दी है
उनमें भारत
की ‘संगीत
नाटक अकादेमी’,
उत्तर प्रदेश,
राजस्थान और
गुजरात की
संगीत नाटक
अकादमियां, जोनल सांस्कृतिक केंद्र और
मध्य प्रदेश,
केरल, पश्चिम
बंगाल, कर्नाटक,
असम, गोवा
और मणिपुर
की राज्य
अकादमियां एवं सांस्कृतिक विभाग प्रमुख
हैं। जिन
प्रतिष्टित आयोजनों में उन्होंने अपनी
कला का
प्रदर्शन किया
है उनमें
दिल्ली का
कत्थक महोत्सव,
मध्य प्रदेश
का खजुराहो
नृत्य महोत्सव,
ओडिशा का
कोणार्क महोत्सव,
कोलकता का
उदय शंकर
उत्सव, मुंबई
का नेहरु
केंद्र नृत्य
उत्सव, लखनऊ
में लच्छु
महाराज जयंती,
वाराणसी का
गंगा महोत्सव,
राजगढ़ का
चक्रधर समारोह,
चिदंबरम का
नाट्यांजलि, सारनाथ का बुद्ध महोत्सव,
मणिपुर का
भाग्यचंद्र नृत्य उत्सव और श्रीकृष्ण
गण सभा,
ब्रह्मा गण
सभा और
चेन्नई के
भारत कालाचार
के उत्सव
उल्लेखनीय हैं.
नृत्य में उनकी
दक्षता और
उपलब्धियों के लिए उन्हें श्रीकृष्ण
गणसभा द्वारा
‘नृत्य चूड़ामणि’
और
चेन्नई की ब्रह्म गणसभा द्वारा
‘नाट्य पद्म’
की उपाधि
से सुशोभित
किया जा
चुका है.
चंडीगढ का
प्राचीन कला
केंद्र उन्हें
‘नृत्य शिरोमणि’
से सम्मानित
कर चुका
है. इसके
अतिरिक्त वे
असम के
प्रतिष्टित ‘रसेस्वर सैकिया बरबयाँ पुरुस्कार’
और भुवनेश्वर
की मर्दला
अकादेमी द्वारा
‘ताल वाद्य
सम्मान’ से
भी सम्मानित
किये जा
चुके हैं.
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