सिर्फ प्रदर्शनों और मनोरंजन तक सीमित मान लिए थिएटर को मंजुल भारद्वाज ने जीवन में बदलाव का माध्यम साबित करके दिखाया है.पिछले बीस वर्षों से सतत इस अभियान में जुटे मंजुल ने गरीब बस्तियों के बच्चों से लेकर विभिन्न स्कूलों-कॉलेजों के छात्रों और कॉर्पोरेट जगत के शीर्ष अधिकारियों तक के जीवन में थिएटर ऑफ रेलेवेंस नाट्य-पद्धति के माध्यम से बदलाव लाया है. मंजुल भारद्वाज अब शिक्षाजगत में बदलाव की मुहिम पर काम कर रहे हैं.कोल्हापुर के हुपरी गाँव के द वेंकटेश एजुकेशन सोसायटी विद्यालय से इसकी उन्होंने शुरुआत की है. जहाँ पिछले अप्रैल महीने से छात्र,शिक्षक,पालक,स्कूल प्रशासक-व्यवस्थापक और ग्रामवासी मंजुल के निर्देशन में आयोजित थिएटर ऑफ रेलेवेंस नाट्य-कार्यशालाओं में सहभागिता कर शिक्षा के मूल्य, उद्देश्य, शिक्षक की भूमिका,गरिमा, स्कूल किसका, छात्र स्कूल क्यों आते हैं आदि विषयों पर नाटक कर उपर्युक्त विषयों को अंवेषित कर जीवन से जोड़ रहे हैं. मंजुल भारद्वाज ने स्वयं को रंगकर्मी के रूप में ढूँढा है। वह प्रदर्शन कौशल्य से संपन्न हैं। वह अभिनेता हैं, निर्देशक हैं,लेखक हैं, फेसिलिटेटर(सुविधाप्रदाता) और पहलकर्ता हैं। वह एक स्वप्नद्रष्टा हैं और सपनों को हकीकत में बदलने का कौशल्य व सकारात्मक दृष्टिकोण रखते हैं। उन्होंने 12 अगस्त 1992 को थियेटर ऑफ रेलेवेंस नामक दर्शन का सूत्रपात किया।
मंजुल भारद्वाज ने लेखक-निर्देशक के तौर पर 25 से अधिक नाटकों का लेखन और निर्देशन किया है। इन्होंने भारत के 28 राज्यों और विदेशों में विभिन्न संगठनों,संस्थानों,समूहों आदि के लिए थियेटर ऑफ रेलेवेंस के तहत 3 सौ से अधिक कार्यशालाओं का संचालन किया है। उन्हें कार्यशालाओं के संचालन के लिए विदेशों से बार-बार आमंत्रित किया जाता है। जर्मनी, ऑस्ट्रेलिया और यूरोप के कई देशों के विभिन्न नाट्य समूहों, संस्थानों, विद्यालयों, संगठनों के लिए अनगिनत कार्यशालाओं का संचालन किया है। संयुक्त राज्य अमेरिका के बोस्टन की ब्रांडिस यूनिवर्सिटी ने अपने कई छात्रों को थियेटर ऑफ रेलेवेंस की प्रक्रियाओं, सिद्धांतों, अवधारणाओं और मूल आधार को जानने समझने के लिए भेजा है।
वह संभ्रांत अंतरराष्ट्रीय स्तर से लेकर भारत के महानगरों, नगरों, ग्रामीण व आदिवासी अंचलों में थियेटर के लिए पिछले 25 वर्षों से जमीनी स्तर पर काम कर रहे हैं। उन्होंने 1992 में एक्सपेरिमेंटल थियेटर फाउंडेशन का गठन किया और भारत के थियेटर आंदोलन में मार्गदर्शक की भूमिका निभा रहे हैं। इटीएफ थियेटर के माध्यम से रचनात्मक बदलाव की प्रयोगशाला है।उन्होंने मुंबई सहित देश के विभिन्न भागों में बाल मजदूरों के साथ कार्य करके यह साबित किया है कि थियेटर बदलाव का माध्यम है। थियेटर प्रदर्शनों और प्रशिक्षणों के द्वारा 50 हजार से अधिक बाल मजदूरों का पुनर्वास किया है। उनके द्वारा लिखित नाटक ‘मेरा बचपन’ का भारत से लेकर विदेश तक 12 हजार से अधिक बार प्रदर्शन किया जा चुका है। वह एचआईबी व एड्स पर प्रदर्शन टीम तैयार कर एचआईबी पीड़ित व प्रभावित बच्चों,युवाओं,स्त्रियों,तथा पुरुषों के साथ जीने के लिए मजबूत इच्छा शक्ति और सकारात्मक दृष्टिकोण का भाव भरने का कार्य कर रहे हैं।
समाज में सकारात्मक स्वधारणाओं व छवि का विकास कर तथा स्त्रियों की रूढ़िवादी समझ को तोड़कर मंजुल ने यौन शोषण और घरेलू हिंसा का शिकार हुई 15 सौ स्त्रियों के पुनर्वसन का सूत्रपात किया है।उनका नाटक ‘लाडली’ जो लिंग चयन के मुद्दे पर आधारित है,इस समय पूरे भारतवर्ष में प्रदर्शन के माध्यम से ‘आइओपनर’ की भूमिका निभा रहा है। वह कठिन परिस्थितियों में रह रहे बच्चों, वंचित स्त्रियों और लड़कियों, किशोरों-किशोरियों, नीति निर्माताओं से लेकर नीति लागू करने वाले सरकारी अधिकारियों के साथ भी काम कर रहे हैं।
मंजुल मानवीय प्रक्रियाओं के (उत्प्रेरक) प्रवर्तक और कॉर्पोरेट प्रशिक्षक हैं। उन्होंने कॉर्पोरेट व प्रबंधन विकास में थियेटर ऑफ रेलेवेंस पर आधारित प्रशिक्षण मॉड्यूल विकसित किया है। वह पिछले एक दशक से अधिक समय से थियेटर ऑफ रेलेवेंस पर आधारित प्रशिक्षण मॉड्यूल की खोज कर रहे हैं और प्रतिष्ठित सार्वजनिक व निजी क्षेत्र की कंपनियों मसलन; ओएनजीसी, इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन, बीएचईएल, बीपीसीएल, टेहरी हाइड्रो डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन, सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया, रिलायंस एनर्जी आदि में उसका प्रयोग कर रहे हैं।इनके कॉन्सेप्ट ‘मानव संसाधन में थियेटर ऑफ रेलेवेंस की भूमिका’का दिल्ली के ईएमपीआइ स्कूल में उदय पारीक एचआर लैब में मानव संसाधन प्रक्रिया सिखाने में शैक्षणिक उपकरण के रूप में इस्तेमाल हो रहा है। वह भारत व विदेश के कई संस्थानों, अकादमियों व संगठनों में विजिटिंग फॅकल्टी हैं।
उन्हें उनके नाटक ‘दूर से किसी ने आवाज दी’ के श्रेष्ठ अभिनेता को पुरस्कार मिला है। उन्हें महाराष्ट्र सरकार द्वारा ‘सिटिजन्स कॉन्सिल फॉर बेटर टुमौरो’ से सम्मानित किया गया है।थियेटर की स्ट्रीट थियेटर श्रेणी में वर्ष 2006-07 में जेण्डर सेंसटिविटी के लिए ‘उन्फपा-लाडली अवार्ड’ से सम्मानित किया गया है।
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Manjul Bhardwaj
Founder - The Experimental Theatre Foundation www.etfindia.org
Initiator & practitioner of the philosophy " Theatre of Relevance" since 12
August, 1992.
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