चित्तौड़गढ़, 24 फरवरी।
भारतीय संस्कृति की गायन, वादन एवं नृत्य कलाओं को जीवंत रखने के लिए प्रयासरत संस्था स्पिक मैके द्वारा मेवाड़ विष्वविद्यालय में हुई पहली प्रस्तुति में भरत नाट्यम नृत्य की प्रस्तुति दी गई।सभागृह में दोपहर बाद आयोजित इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि डीन आर.के. पालीवाल थे। स्पिक मैके के संभागीय समन्वयक जे.पी. भटनागर, डिप्टी डीन डी.के शर्मा के साथ रमा वैद्यनाथन ने मां सरस्वती की प्रतिमा पर माल्यार्पण कर दीप प्रज्जवलित किया। मुख्य अतिथि द्वारा नृत्यांगना रमा वैद्यनाथन के साथ सह कलाकारों का विजय स्तंभ प्रतीक चिन्ह देकर अभिनंदन किया गया।नृत्यांगना ने सर्वप्रथम मां शारदे को प्रणाम कर अंजलि मुद्रा में मयूर नृत्य की मनमोहक प्रस्तुति दी, जिस पर पांडाल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा।
नृत्यांगना ने चेहरे एवं आंखों के हावभाव तथा भागभंगीमा एवं हाथों की अंगूलियों की मुद्राओं से बेहरीन ढंग से कहानियों को समझाने का प्रयास किया। मुख्य रूप से चेहरे के हावभाव एवं बनावट से दर्शकों को सबकुछ सहज ही समझ में आ जाता है। नृत्य शैली प्रवीणता के लिए रमा ने आदिगुरू शंकराचार्य एवं भरत मुनि को भी याद किया। इसके पश्चात रमा ने शिव के अर्धनारीश्वर रूप पर आधारित नृत्य की प्रस्तुति दी। इस प्रकार नृत्य के दौरान गायन, वादन एवं नृत्य का तारतम्य देखते ही बन रहा था। षास्त्रीय नृत्य में क्रमवार तीन तरह के नृत्यों की प्रस्तुति दी गई।वैद्यनाथन ने शास्त्रीय नृत्य की विशेषता बताते हुए कहा इस में सूची, चंद्रकला आदि के भावों के तहत प्रस्तुति देनी होती है।
रमा वैद्यनाथन नई पीढ़ी की जानी-मानी भारतीय उत्कृष्ट कत्थक नृत्यांगनाओं में से एक हैं। भरत नाट्यम में विषेष महारत हासिल करने वाली रमा वैद्यनाथन पिछले 20 वर्षों से अपनी प्रस्तुतियां राष्ट्रीय मंच पर दे रही हैं। इन्होंने अपने गुरू यामिनी कृष्णमूर्ति एवं सरोजा वैद्यनाथन के सान्निध्य में नृत्य कला की शिक्षा ग्रहण की। वैद्यनाथन ने भरत नाट्यम में स्वयं द्वारा सृजित नई विधाओं का भी समायोजन किया है। नृत्यांगना के साथ के.शिव कुमार नटुवंगम, अन्नादुराई, अरूणकुमार मृदंगम एवं गायिका विद्या श्रीनिवासन सह कलाकार भी साथ थे। इस अवसर पर विश्वविद्यालय के डायरेक्टर हरीश गुरनानी, बोर्ड ऑफ मैनेजमेंट सदस्य सुनील गदिया, बीएड प्रिंसिपल अरूणा दुबे, सांस्कृतिक प्रभारी अनिता आहुजा सहित सभी संकायों के प्राध्यापक एवं विद्यार्थी उपस्थित थे। अंत में डी.के शर्मा ने आभार व्यक्त किया।
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